त्रिगुणात्मक त्रैमुर्ती दत्त हा जाणा |
त्रिगुणी अवतार त्रैलोक्य राणा |
नेति नेति शब्दे न ये अनुमाना |
सुरवर मुनिजन योगी समाधी न ये ध्याना || १ ||
जयदेव जयदेव जय श्री गुरुदत्ता |
आरती ओवाळितां हरली भवचिंता, जयदेव जयदेव || धृ. ||
सबाहय अभ्यंतरी तु एक दत्त |
अभ्यागासी कैंची कळे न ही मात |
पराही परतली तेथे कैंचा हा हेत |
जन्म मरणाचा पुरलासे अंत।। जयदेव || २ ||
दत्त येऊनिया उभा ठाकला |
सदभावे साष्टांगे प्रणिताप केला |
प्रसन्न होऊनी आशीर्वाद दिधला |
जन्म-मरणाचा फेरा चुकविला।। जयदेव || ३ ||
दत्त दत्त ऐसे लागले ध्यान |
हारपले मन झाले उन्मन |
मी-तूं पणाची झाली बोळवण |
एकाजनार्दनी श्री दत्तध्यान || जयदेव || ४ ||